अन्तर जलीय पुरातत्व

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भारत के पास 7,516 कि.मी. लंबी तटरेखा, 1197 द्वीप समूह और 1,55,889 वर्ग कि.मी. समुद्री क्षेत्र और 2,013,410 वर्ग कि.मी. विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र है। देश का विस्तृत जल क्षेत्र अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत में धनी है। अंतर्जलीय पुरातत्व के महत्व का अनुभव VI पंचवर्षीय योजना में प्रारंभ किया गया। भारत में अंतर्जलीय पुरातत्व की शुरूआत 1981 में हुई। देश में तट से दूर अन्वेषण ने इस विषय को पर्याप्त लोकप्रिय बना दिया। 2001 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए एस आई) में अंतर्जलीय पुरातत्वविज्ञान विंग (यू ए डब्ल्यू) की स्थापना इस विषय के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
अपनी स्थापना से यूएडब्ल्यू अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में अंतर्जलीय पुरातात्विक अध्ययन में सक्रियता से जुड़ा हुआ है। यू ए डब्ल्यू निम्नलिखित कार्यों में संलग्न है: · अंतर्जलीय स्थलों और प्राचीन पोत अवशेषों का प्रलेखन। · व्यावसायिक पुरातत्वविदों, युवा अनुसंधानकर्ताओं और छात्रों को प्रशिक्षण। · विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करने और जागरूकता पैदा करने हेतु संगोष्ठियों का आयोजन। · अंतर्जलीय संस्कृति विरासत की रक्षा।
यू ए डब्ल्यू अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत के अध्ययन और रक्षा के लिए अन्य सरकारी संगठनों के साथ सहयोग करता है। भारतीय नौसेना से सहयोग एक बड़ी सफलता रही है। सांस्कृतिक विरासत की ओर लक्षित अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और अंतर्जलीय कार्यकलापों का विधायन यू ए डब्ल्यू की मुख्य चिंता रही है। यूनेस्को द्वारा 2001 में ”अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा पर सम्मेलन” का आयोजन अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और प्रबंधन के बारे में भूमंडलीय चिंता को प्रदर्शित करता है। यूएडब्ल्यू ने अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और परिरक्षण के लिए कदम उठाया है।संपर्क करें: डॉ. आलोक त्रिपाठी,
संपर्क:
अधीक्षक पुरातत्त्ववेत्ता
अंडरवाटर पुरातत्व विंग
भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण
लाल किला, दिल्ली – 110006
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