अंतर्जलीय पुरातत्व विज्ञान विंग- इतिहास

इतिहास | क्षेत्र कार्य | प्रशिक्षक | संगोष्ठी/सम्मेलन | प्रकाशन
अंतर्जलीय पुरातत्व के महत्व को (VI) छठी पंचवर्षीय योजना के प्रारंभ में अनुभव किया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) में अंतर्जलीय पुरातत्व का इतिहास तीन चरणों से गुजरा है।
1987 – 1990 | 1991 – 2000 | Since 2001|2001 | 2002 | 2003 | 2004 | 2005
1987 to 1990
- सम्मेलन के लिए निधियाँ प्रदान की गई।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम को वित्त पोषित किया गया।
- तकनीकी स्टाफ का प्रशिक्षण।
1987 से चालू परियोजना, संगोष्ठियों के आयोजन आदि को वित्तीय सहायता प्रदान करके इस विषय के विकास में योगदान दिया।
1987 में एएसआई में अंतर्जलीय पुरातत्व शुरू करने का निर्णय लिया गया और 1988 में पहले पुरातत्वविद को पुरातत्व विज्ञान के इस बहु-विषयक शाखा में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया।
एएसआई ने राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और परिरक्षण के क्षेत्र में उच्च मानक बनाए रखे हैं। चूंकि यह विषय अभी भी प्रारंभिक अवस्था में था और अपने पुरातत्वविदों को विश्व में हाल की गतिविधियों से अवगत कराना आवश्यक था।
एएसआई ने अपने प्रशिक्षित अंतर्जलीय पुरातत्वविद को विभिन्न देशों के विशेषज्ञों के साथ सहयोग के लिए भेजा।
1991 – 2000
- 1993 तक प्रशिक्षण कार्यक्रम को वित्तपोषित किया।
- प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया
- जीएसआई के साथ (1995)
- आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय के साथ (1997)
- अंतर्जलीय अन्वेषण (1991)
- कर्मचारियों (स्टाफ) के लिए उच्च प्रशिक्षण
- विदेश में अंतर्जलीय उत्खनन में भागीदारी।
1991 में इसने 40 मी. की गहराई में पहली बार स्वतंत्र रूप से भारतीय जल में अन्वेषण किया। 2002 में इसकी खुदाई तक यह पुरातत्वविदों द्वारा अन्वेषित देश में सबसे गहरा पुरातात्विक स्थल रहा।
Since 2001
8 फरवरी 2001 को अंतर्जलीय पुरातत्व विंग की स्थापना अंतर्जलीय पुरातत्व के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने महानिदेशक, एएसआई के कार्यालय, जनपद, नई दिल्ली में 26 फरवरी 2001 से काम करना शुरू किया।
अपनी स्थापना से यूएडब्ल्यू अंतर्जलीय पुरातात्विक स्थलों और पोत अवशेषों के अन्वेषण और भारतीय जलों में डूबे हुए सांस्कृतिक विरासत की परिरक्षा में लगा हुआ है। कुछ उपलब्धियों की सूची इस प्रकार है।
2001
- तर्जलीय पुरातत्व विंग की स्थापना
- पुरातत्व विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में एएसआई, राज्य के पुरातत्व विभाग और विश्वविद्यालय के पुरातत्वविदों ने भाग लिया।
- महाबलीपुरम, तमिलनाडु से आगे की ओर बंगाल की खाड़ी में पहला अन्वेषण किया।
2002
- महाबलीपुरम, तमिलनाडु से आगे की ओर अन्वेषण किया।
- एरिकामेडु, पांडिचेरी संघ शासित क्षेत्र का अन्वेषण किया।
- मई में बंगाराम द्वीप से आगे की ओर अंतर्जलीय अन्वेषण किया और इसके बाद भारतीय नौसेना के सहयोग से प्राचीन पोत अवशेष ”प्रिन्सेस रॉयल” का पहला क्रमबद्ध अंतर्जलीय उत्खनन किया।
2003
- भारतीय नौसेना के साथ नई दिल्ली में समुद्री पुरातत्व विज्ञान पर अंतर्जलीय संगोष्ठी (आईएएमए-2003)
- प्रिन्सेस रॉयल की खुदाई पर अंतरिम रिपोर्ट का प्रकाशन किया।
- एलीफेंटा द्वीप, महाराष्ट्र में अन्वेषण किया।
- रोसकिल्डे, डेनमार्क में नौका और पोत पुरातत्व-10 पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया।
- हांगकांग, एसएआर चीन में अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत पर परिरक्षण पर सम्मेलन की यूनेस्को एशिया-प्रशांत कार्यशाला में भाग लिया।
2004
- तट से दूर अन्वेषण किया-
- महाबलीपुरम, तमिलनाडु
- कावेरीपट्टनम, तमिलनाडु
- एरिकामेडु, संघ शासित क्षेत्र, पांडिचेरी
- एलीफेंटा द्वीप, महाराष्ट्र में अन्वेषण आयोजित किया।
- समुद्री पुरातत्व 2003 पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की कार्यवाही प्रकाशित की।
2005
- महाबलीपुरम, तमिलनाडु में खुदाई का आयोजन।
- समुद्री पुरातत्व विज्ञान पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी (आईएसएमए- 2005) का आयोजन किया।
- विरासत और संस्कृति मंत्रालय, ओमान सल्तनत के साथ मगन नौका पुनर्संरचना परियोजनाओं में भाग लिया।
- एलीफेंटा द्वीप, महाराष्ट्र में अन्वेषण किया।