शेखचिल्ली का मकबरा, थानेसर
टिकट द्वारा प्रवेश वाले स्मारक-हरियाणा
कुरूक्षेत्र महाभारत के युद्घ का पर्याय है। यह सरस्वती नदी (आधुनिक सरसुती) जो अब सूख गई है, के दक्षिण में और द्रशद्वती नदी जो ब्रह्मवर्त की पवित्र भूमि में स्थित थी, के उत्तर में है। थानेसर (प्राचीन स्थाणीश्वर) वर्धन या पूष्यभूती वंश की राजधानी थी जिसका उत्तर भारत के अधिकांश भाग पर शासन था। संस्कृत के महान कवि बाणभट्ट ने अपनी पुस्तक हर्षचरित्र में भी थानेसर के साथ हर्ष की संबद्धता का विस्तृत रूप से वर्णन किया है। उसने अपनी पुस्तक में सुरक्षा दीवार, खाई और दो मंजिले धवलगृह सहित महल का उल्लेख किया है।
थानेसर का वर्तमान शहर (760°49′ उत्तर; 290° 30′ पूर्व) प्राचीन टीले पर स्थित है जो ऊंचाई और क्षेत्र, दोनों की दृष्टि से काफी बड़ा है। यह अंबाला और करनाल के बीच दिल्ली के उत्तर-पश्चिम में लगभग 163 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। स्थल तक पहुंचने के लिए कोई भी व्यक्ति पिपली तक ग्रांड ट्रंक रोड से आ सकता है जहां से यह आगे पश्चिम में लगभग 8 कि.मी. दूर है।
इतिहास में वर्णन है कि ग्रांड ट्रंक रोड थानेसर नगर से होकर गुजरता था जहां शेखचिल्ली के मकबरे के निकट पुराना पुल और सराय अभी भी मौजूद है जो सम्भवत: शेरशाह सूरी या उसके बाद के समय का है। यह खूबसूरत मकबरा और उससे जुड़ा मदरसा सूफी संत, अब्दुल-उर-रहीम, ऊर्फ अब्दुल-उल-करीम, ऊर्फ अब्दुल-उर-रज्जाक, का है जो शेखचिल्ली के नाम से प्रसिद्घ था। ऐसा माना जाता है कि यह मुगल राजकुमार, दारा शिकोह (1650 ईसवी) का धर्म गुरू था।
वास्तुशिल्प की योजना के अनुसार इस पर पर्याप्त पारसी प्रभाव देखने को मिलता है। इसके अनुपम और परिष्कृत वास्तुशिल्प के कारण इसे उत्तर भारत में ताज महल के बाद दूसरा दर्जा दिया गया है। इस स्मारक को दिनांक 27.3.1919 की अधिसूचना संख्या-8516 के अनुसार प्राचीन स्मारक और पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 की धारा 4 के तहत संरक्षित और राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है।
मदरसे के पश्चिमी द्वार के निकट अभी भी लाल बलुआ पत्थर की एक छोटी लेकिन रमणीय मस्जिद है। यह गोल झिरीवाली मीनारों के लिए प्रसिद्घ है जो इसकी पिछली दीवार से जुड़ी हुई हैं। इस मस्जिद की छत स्तंभों पर टिकी है जो निचले उभार पर उत्कीर्णित फूलों के डिजाइन से सजी है। ये स्तंभ भी फूलों के डिजाइन से सजे हुए हैं जबकि गढ़त के ऊपर आधारों पर चैत्य खिड़की के मूल भाव दर्शाए गए हैं। पश्चिमी दीवार के मध्य में किबला है जिसके दोनों ओर मेहराबदार आले हैं जहां कुरान की आयतें लिखी हुई हैं। ईंट से बना चबूतरा जो अग्रभाग में अहाता बनाता है, को बाद में जोड़ा गया। यह मस्जिद सत्रहवीं शताब्दी ईसवी की है।
इस परिसर (अर्थात शेखचिल्ली के मकबरे के उत्तर में) के दक्षिण की ओर एक बहुत बड़े आकार का भवन है जो स्तर विन्यास के साक्ष्य और निर्माण की शैली, दोनों के आधार पर उद्यान परिसर प्रतीत होता है जिसमें मुगल बाग पद्घति का अनुकरण किया गया है और यह चार बराबर भागों (चार बाग पद्घति) में विभाजित है। इसके मध्य भाग में वर्गाकार हौज है। हौज (टैंक) के लिए पानी की पूर्ति पूर्व की ओर लगे टेराकोटा के पाइपों से की जाती थी जो दीवारों के भीतर लगे हुए थे। मध्य हौज के पूर्वी भाग की ओर एक छोटा आयताकार टैंक है जो पूर्व दिशा से आने वाले उठे हुए खुले प्रणाल से जुड़ा हुआ था। टैंक के उत्तर की ओर एक छोटा हौज है जिसके दोनों सिरों पर नोकदार पैटर्न बने थे और मध्य भाग में एक तांबे का फव्वारा लगा था। इसमें प्रयुक्त होने वाला जल भूमिगत नाली के माध्यम से गुजरता है जो चूने के पलस्तर वाली सतह के नीचे बनी थी।
अब हर्षवर्धन उद्यान के नाम से प्रसिद्घ इस उद्यान में पूर्वी दीवार के मध्य में स्थित बड़े दो मंजिलें प्रवेश द्वार से प्रवेश किया जाता है जहां से एक मार्ग इसकी चारों तरफ जाता है। इसके तीनों ओर अर्थात क्रमश: पूर्व, उत्तर और पश्चिम में दो-दो कोठरियों वाले कक्षों की एक श्रृंखला बाह्य भाग पर खड़ी थी जिसकी दीवारों पर आले और शय्याकोष्ठ बने हुए थे। इस सराय के पश्चिमी स्कंध में दो मंजिला कक्ष थे जिनमें मध्य में और दक्षिण-पश्चिमी किनारे पर लगी सीढियों से चढ़ा जाता था।
मुख्य प्रवेश द्वार के बिल्कुल सामने एक अन्य राजसी संरचना है जिसका निर्माण मुख्य प्रवेश द्वार के समान ही किया गया है। हालांकि इस संरचना में भू-तल से कोई प्रवेश नहीं करता लेकिन ऊपरी मंजिल पर पश्चिम की ओर से इसका प्रवेश द्वार था। ऊपरी मंजिल पर बने दरवाजे से सीधे ही सराय के पश्चिम में स्थित राजा हर्ष के टीले तक पहुंचा जा सकता है और कक्ष का निर्माण इस तरीके से किया था कि यहां से प्राधिकारी संभवत: सराय में नीचे एकत्रित व्यक्तियों को संबोधित किया करता था।
इस मकबरे के पश्चिम में हर्ष के टीले के अवशेष हैं। इस स्थल के उत्खनन से इस स्थल पर लगभग पहली शताब्दी ईसवी से लेकर बाद के मुगल काल तक के आवासीय अवशेष प्राप्त हुए हैं। पूर्व-कुषाण काल के चित्रित भूरे मृद्भांडों के साथ साधारण भूरे-काले और लाल मिट्टी के बर्तनों के कुछ टुकड़ों से इस स्थल पर पहली सहस्राब्दी ईसा-पूर्व के रहन-सहन का पता चला है। विभिन्न अभिज्ञेय अवशेषों के आधार पर और उत्खनन से छह सांस्कृतिक कालों के अनुक्रम का पता चला है। ये काल इस प्रकार हैं: कुषाण काल (पहली से तीसरी शताब्दी ईसवी), गुप्त काल (चौथी से छठी शताब्दी ईसवी) गुप्त काल के बाद का काल या वर्धन काल (छठी से सातवीं शताब्दी ईसवी) राजपूत काल (आठवीं से बारहवीं शताब्दी ईसवी) और मुगल काल (सोलहवीं से उन्नीसवीं शताब्द ईसवी)।
यह स्मारक सातों दिन सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
प्रवेश शुल्क: भारतीय नागरिक और सार्क देशों (बंगलादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान) और बिमस्टेक देशों (बंगलादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलेंड और म्यांमार) के पर्यटक-25/-रूपए प्रति व्यक्ति
अन्य- 300/- रूपए प्रति व्यक्ति
(15 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए प्रवेश नि:शुल्क है)