"Janjira Fort, Murd (Maharastra) is closed for general visitors due to foul climate condition from 26-05-2023 to 31-08-2023.""Submitting of application for Exploration / Exacavation for the field season 2022-2023 - reg."

कुतुब मीनार

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कुतुब मीनार और इसके स्‍मारक (1993) दिल्‍ली

लाल और पांडु रंग के बलुआ पत्‍थर से निर्मित कुतुब मीनार भारत की सबसे ऊंची मीनार है। आधार पर इसका व्‍यास 14.32 मीटर और शीर्ष पर लगभग 2.75 मीटर है और इसकी ऊँचाई 72.5 मीटर है।

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इस मीनार की नींव कुतुबुद्दीन ऐबक ने बारहवीं शताब्‍दी के अन्‍त में प्रार्थना के लिए आह्वान करने हेतु मुआजिन (ऐलान करने वाले) के लिए की थी और पहली मंजिल का निर्माण करवाया था जिस पर तीन और मंजिलों का निर्माण उसके उत्‍तराधिकारी और दामाद, शम्मसुद्दीन इल्तुत्मिश (1211-1236 ई.) ने करवाया था। सभी मंजिलें बाहर की ओर निकले छज्जों से घिरी हैं जो मीनार के चारों ओर हैं और इनको पत्थर के ब्रेकटों द्वारा सहारा दिया हुआ है जो छत्‍तेदार डिजाइन से अलंकृत हैं। पहली मंजिल पर यह डिजाइन अधिक सुस्‍पष्‍ट है।

मीनार के विभिन्‍न स्‍थानों पर अरबी और नागरी लिपि में अनेक अभिलेख मौजूद हैं जो कुतुब के इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। इसके भूतल पर जो अभिलेख हैं उनके अनुसार इसकी मरम्‍मत फिरोजशाह तुगलक (1351-88) और सिकंदर लोदी (1489-1517) ने करवाई थी। मेजर आर. स्मिथ ने भी इसकी मरम्‍मत और पुनरूद्वार करवाया था।

कुव्‍वतुल इस्‍लाम मस्जिद जो मीनार के उत्‍तर-पूर्व में है, का निर्माण 1192-1198 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था। यह दिल्‍ली सल्तनत द्वारा निर्मित सबसे पहली मस्जिद है। इसमें एक आयताकार प्रांगण है जो चारों ओर से छत्तों द्वारा घिरा हुआ है जो कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा ध्‍वस्‍त किए गए 27 हिंदू और जैन मंदिरों के तराशे गए स्‍तंभों और स्‍थापत्‍य खंडों के ऊपर टिके हैं। यह तथ्‍य मुख्‍य पूर्वी प्रवेश द्वार पर ऐबक के अभिलेख में दर्ज है।

बाद में इसमें एक ऊंचे चापित आवरण का निर्माण किया गया और शम्मसुद्दीन इल्तुत्मिश (1211–36) और अलाउद्दीन खालजी ने मस्जिद का विस्‍तार किया। प्रांगण में स्थित लौह स्‍तंभ पर चौथी शताब्‍दी की ब्राह्मी लिपि में संस्‍कृत में एक अभिलेख मौजूद है जिसके अनुसार चंद्र नाम के शक्तिशाली राजा की स्‍मृति में विष्‍णुपद नामक एक पहाड़ी पर इस स्‍तंभ की स्‍थापना विष्‍णु ध्‍वज (भगवान विष्‍णु का ध्‍वज) के रूप में की गई थी। अलंकृत शीर्ष के उपर एक गहरा खोल यह दर्शाता है कि शायद इसमें गरूड की कोई प्रतिमा स्‍थापित थी।

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इल्तुत्मिश (1211-36) के मकबरे का निर्माण 1235 में किया गया। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित यह एक वर्गाकार कक्ष है जिसके प्रवेश द्वारों और समूचे आंतरिक भाग पर सारासेनिक परंपरा में अभिलेख, ज्‍यामितिक और अरबस्क पैटर्न बहुत अधिक उत्‍कीर्णित है। पहिया, पुष्‍पगुच्‍छ आदि जैसे कुछ मूल भाव (मोटिफ) हिंदू डिजाइनों की याद दिलाते हैं।
अलाई दरवाजा जो कुव्‍वतुल इस्‍लाम मस्जिद के दक्षिणी प्रवेश मार्ग पर है, का निर्माण अलाउद्दीन खलजी ने हिजरी 710 (1311 ई.) में करवाया था जैसा कि इस पर खुदे अभिलेखों में वर्णित है। यह पहला ऐसा भवन है जहां निर्माण और अलंकरण के इस्‍लामी सिद्धांतो का प्रयोग हुआ है।

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कुतुब मीनार के उत्‍तर में स्थित अलाई मीनार का निर्माण कार्य अलाउद्दीन खलजी ने इस इच्‍छा के साथ आरंभ करवाया था कि वह इसे पहले की मीनार से दोगुने आकार की बनवाएगा। वह केवल पहली मंजिल का ही निर्माण करवा पाया था जब उसका देहान्‍त हो गया। इसकी मौजूदा ऊँचाई 25 मीटर है। कुतुब परिसर में जो अन्‍य अवशेष मौजूद हैं उनमें मदरसा, कब्रें, मकबरे, मस्जिद और स्‍थापत्‍यकला से संबंधित खंड शामिल हैं।

स्मारक सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क:- भारतीय नागरिक और सार्क देशों (बंगलादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान) और बिमस्टेक देशों (बंगलादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलेंड और म्यांमार) के पर्यटक- 30/-रूपए प्रति व्यक्ति
अन्य- 500/- रूपए प्रति व्यक्ति
(15 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए प्रवेश नि:शुल्क है)।

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