पट्टदकल स्मारक समूह (1987), कर्नाटक
पट्टदकल स्मारक समूह (1987), कर्नाटक
चालुक्य शासक न केवल साम्राज्य निर्माता थे बल्कि कला के भी महान संरक्षक थे जिनके प्रोत्साहन से कारीगरों और शिल्पकारों को स्थापत्य कला की विभिन्न शैलियों का प्रयोग करने तथा इन्हें एक नया रूप देने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिला। उनके शासन काल में ही शैलकृत पद्धति की जगह संरचनात्मक मंदिर निर्माण पद्धति की शुरुआत हुई।
कर्नाटक के बीजापुर जिले में स्थित पट्टदकल न केवल चालुक्य स्थापत्य कला की गतिविधियों के कारण प्रसिद्ध था बल्कि शाही राज्यभिषेक- ‘पट्टदकिसुवोलल’ के लिए भी एक पवित्र स्थल था। यहां निर्मित मंदिर रेखा, नागर , प्रासाद और द्रविड़ विमान मंदिर निर्माण शैलियों का मिला-जुला रूप प्रस्तुत करते हैं।
संगमेश्वर मंदिर पट्टदकल में प्राचीनतम मंदिर है जिसका निर्माण विजयादित्य सत्याश्रय (697-733 ई.) द्वारा करवाया गया था। कडासिद्धेश्वर, जंबूलिंगेश्वर मंदिर यहां के अन्य उल्लेखनीय मंदिर हैं। ये दोनों 7 वीं सदी के हैं जबकि गलगनाथ मंदिर का निर्माण एक शताब्दी बाद रेखा-नागर-प्रासाद शैली में किया गया। काशीविश्वेशर मंदिर आरंभिक चालुक्य शैली में बनाया गया अंतिम मंदिर था। मल्लिकार्जुन मंदिर का निर्माण रानी त्रिलोक्य महादेवी ने पल्लवों पर विक्रमादित्य – ।। की विजय के उपलक्ष्य में करवाया था। उसे विरूपाक्ष मंदिर का निर्माण करवाने का श्रेय भी जाता है जो कांचीपुरम के कैलाशनाथ मंदिर की स्थापत्यकला से प्रभावित है। विरूपाक्ष मंदिर का बाद में राष्ट्रकूट शासक, कृष्णा-। (757-783 ई.) ने एलोरा स्थित बृहद् कैलाश मंदिर को उत्कीर्ण करने के लिए एक नमूने के रूप में उपयोग किया।

पट्टदकल में अंतिम परिवर्धन 9 वीं सदी के राष्ट्रकूट शासक, कृष्णा-1 के शासनकाल में एक जैन मंदिर के रूप में किया गया जो स्थानीय रूप से जैन नारायण मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है और इसकी नीचे की दो मंजिलें प्रयोग में हैं।
लालित्य और महीन कारीगरी, आरंभिक चालुक्य शासकों की मूर्तिशिल्प कला की मुख्य विशेषता है। नवग्रहों, दिक्पालों, नटराज, लिंगोद्भव वाले दीवार के आले, अर्धनारीश्वर, त्रिपुरारी, वराहविष्णु, त्रिविक्रम के पैनल मूर्तिकार के कौशल और प्रचलित धार्मिक पूजा के पर्याप्त साक्षी हैं। रामायण, महाभारत, भागवत, पंचतंत्र के कतिपय प्रसंगों को व्यक्त करने वाली वर्णनात्मक नक्काशी इन भव्य धार्मिक भवनों के बिल्कुल अनुरूप है।
पट्टदकल स्थित संगमेश्वर, विरूपाक्ष और मल्लिकार्जुन मंदिर अपने विमानों में अधिकांशत: दाक्षिणात्य तत्वों को अभिव्यक्त करते हैं, जैसा कि समकालीन पल्लव मंदिरों में एक निश्चित रूप दिया गया है।
संगमेश्वर मंदिर जो इन तीनों में से सबसे पहले बना था और जिसका निर्माण चालुक्य विजयादित्य (733-697ई.) ने करवाया था, इस अर्थ में पल्लव शिल्प के निकट है कि इसमें कोई शुकनासिका नहीं है जबकि इस विशेषता वाले अन्य दो मंदिर आरंभिक चालुक्य शैली के हैं और इनसे व्युत्पन्न शैलियों में इस स्थापत्यकला का तत्व मौजूद है जैसा कि एलोरा स्थित कैलाश मंदिर में भी है। संगमेश्वर और वृहत्तर विरूपाक्ष मंदिर, दोनों ही परस्पर मिलते -जुलते है , दोनों ही आधार से लेकर शिखर तक अपनी वास्तु-योजना में वर्गाकार हैं। विक्रमादित्त्य-।। (46-733ई.) की रानी द्वारा निर्मित विरूपाक्ष मंदिर शुकनासिका वाला सबसे आरंभिक मंदिर है। बाद में मल्लिकार्जुन मंदिर भी उसके अनुरूप ही बनाया गया जिसका निर्माण उसी राजा की एक अन्य रानी द्वारा करवाया गया था।
संगमेश्वर मंदिर का मुख्य विमान तिमंजिला है। सबसे नीचे की मंजिल , आंतरिक और बाहरी, दो दीवारों से घिरी हुई है। दूसरी मंजिल, आंतरिक दीवार का ऊपर की ओर निकला हुआ भाग है जबकि बाह्य दीवार मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ को घेरे हुए है।
विरूपाक्ष एक विशाल परिसर है जिसमें एक ऊँचा विमान है। इसके मंडप अक्षीय हैं और अहाते के चारों ओर परिधीय उप -मंदिर हैं जिनको एक दीवार से घेरा गया है तथा इसमें आगे और पीछे गोपुर-प्रवेश द्वार हैं। सभी को एक ही समय में डिजाइन और पूर्ण किया गया है। चालुक्य श्रृंखला में यह सबसे आरंभिक मंदिर-परिसर है जो अभी भी मौजूद है। विशाल गोपुर भी आंरभिक समय के हैं।
मल्लिकार्जुन जिसका निर्माण विरूपाक्ष के तुरंत बाद और इसके निकट किया गया, अपेक्षाकृत एक छोटा मंदिर है। इसमें चार मंजिला विमान, एक वृत्ताकार ग्रीवा और शिखर हैं। इसकी वास्तु- योजना कमोवेश वैसी ही है।
स्मारक सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।
स्मारक सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।
प्रवेश शुल्क:-
भारतीय नागरिक और सार्क देशों (बंगला देश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान) और बिमस्टेक देशों (बंगला देश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलेंड और म्यांमार) के पर्यटक- 30/-रूपए प्रति व्यक्ति
अन्य- 500/- रूपए प्रति व्यक्ति
(15 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए प्रवेश नि:शुल्क है)।