टिकट द्वारा प्रवेश वाले स्मारक-मध्य प्रदेश, खजुराहो
प्राचीन खर्जुर वाहक, खजुराहो आज अपनी कला एवं मंदिर की वास्तुकला के विशिष्ट पैटर्न का प्रतिनिधित्व करता है जो चंदेल राजपूतों के शासन काल के दौरान विद्यमान एक समृद्ध एवं रचनात्मक अवधि की याद दिलाता है। यह चंदेल शासकों की सत्ता का प्रमुख केंद्र था जिन्होंने इसे असंख्य तालाबों, भव्य मूर्तिशिल्प तथा शानदार वास्तुकला वाले इन प्रभावशाली मंदिरों से सज्जित किया। स्थानीय परंपरा के अनुसार यहां कुल 85 मंदिर थे लेकिन अब 25 मंदिर ही मौजूद हैं जो परिरक्षण की विभिन्न अवस्थाओं में हैं। चौंसठ योगिनी मंदिर, ब्रह्मा एवं महादेव मंदिर ग्रेनाइट पत्थर से और शेष मंदिर पांडु, गुलाबी अथवा ह्ल्के पीले रंग के दानेदार बलुआ पत्थर से बने हैं।
यशोवर्मन (954 ई.) ने विष्णु मंदिर बनवाया था जिसे अब लक्ष्मण मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह अपने समय का अलंकृत और सुस्पष्ट उदाहरण है जो चंदेल राजपूतों की प्रतिष्ठा को प्रमाणित करता है।
विश्वनाथ, पार्श्वनाथ एवं वैद्यनाथ मंदिर राजा ढंग के काल के हैं जो यशोवर्मन का उत्तराधिकारी था। जगदम्बी, चित्रगुप्त, खजुराहो के शाही मंदिरों के पश्चिमी समूह में उल्लेखनीय मंदिर हैं। खजुराहो का विशाल और भव्य मंदिर, कंदरीय महादेव है जिसका श्रेय राजा गंद (1017-29 ई.) को दिया गया है। इसके बाद अन्य उदाहरणों में वामन, आदिनाथ, जावरी, चतुर्भज एवं दुलादेव मंदिर शामिल हैं जो छोटे हैं लेकिन अलंकारिक डिजाइन वाले हैं। खजुराहो के मंदिर समूह ऊंचे चबूतरों (जगती) और क्रियात्मक रूप से प्रभावशाली विन्यास के लिए जाने जाते हैं जिसमें एक अर्धमंडप जो प्रवेश द्वार का काम करता है और सामान्यत: मकर तोरण एवं कक्षासन से अलंकृत है और गर्भगृह की ओर जाने वाले अंतराल के साथ हॉल के रूप में मंडप शामिल है। बड़े मंदिरों में अर्धमंडप के सामने ही महामंडप हैं। इनके चारों कोनों पर लघु वेदिकाएं भी हैं और इसीलिए इन्हें पंचायतन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मंदिरों का बाहरी भाग अत्यधिक अलंकृत है। इसके विपरीत, जावरी एवं ब्रह्मा मंदिर साधारण रचनाएं हैं।

मूर्ति परक अलंकरणों में, पूजा-आराधना संबंधी मूर्तियों के अलावा, परिवार, पार्श्व, अवारण, देवता, दिग्पाल, अपसराएं, सुर-सुंदरियां शामिल हैं जिन्हें अपने कोमल, सम्मोहक सौंदर्य संपन्न युवतियों के रूपों के लिए सार्वभौमिक प्रशंसा प्राप्त हुई है। वस्त्र एवं अलंकरण, आकर्षक लावण्य और कमनीयता को कई गुणा बढ़ा देते हैं।

हॉल ही में खजुराहों के निकट जटकारा में बीजा मंडल में हुई खुदाई से एक विशाल मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो 11 वीं सदी ई. का हो सकता है। यह सबसे विशाल माने जाने वाले मंदिर (कंदरीय महादेव मंदिर) से भी चार मीटर अधिक क्षेत्र में फैला है। सरस्वती की अति सुंदर मूर्ति भी यहीं से प्राप्त हुई थी।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।
प्रवेश शुल्क: भारतीय नागरिक और सार्क देशों (बंगलादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान) और बिमस्टेक देशों (बंगलादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलेंड और म्यांमार) के पर्यटक 40/-रूपए प्रति व्यक्ति
अन्य: 600/- रूपए प्रति व्यक्ति
(15 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए प्रवेश नि:शुल्क है)।