जंतर-मंतर
जंतर-मंतर एक वेधशाला है जो कनॉट सर्कस, नई दिल्ली के दक्षिण में पार्लियामेंट स्ट्रीट पर स्थित है। यह ईंटों से बनी एक खगोलीय उपकरण इमारत है। इन उपकरणों को जयपुर के महाराजा जयसिंह-।। (1699-1743 ईसवी) द्वारा संस्थापित किया गया था जिसकी खगोलीय प्रेक्षणों में गहरी अभिरूचि थी और जिसने अपने निर्माण को संस्थापित करने से पहले पश्चिमी और पूर्वी सभी खगोलीय प्रणालियों का उत्सुकता पूर्वक अध्ययन किया था। प्रारंभ में उसने धातु के उपकरणों का निर्माण करवाया जिनमें से कुछ अभी भी जयपुर में सुरक्षित रखे गए हैं, लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया।
इस वेधशाला का सबसे पहले दिल्ली में निर्माण किया गया और इसके बाद इसी प्रकार की वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, वाराणसी और मथुरा में किया गया लेकिन अंतिम वेधशाला अधिक समय तक नहीं रही। परंपरा के अनुसार जयसिंह द्वितीय ने सन् 1710 में दिल्ली में इस वेधशाला का निर्माण करवाया था जबकि आथार-उस-सनादीद के लेखक, सय्यद अहमद खान ने इसके निर्माण का काल 1724 तय किया था। चूंकि जयसिंह द्वितीय ने स्वयं इस बात का उल्लेख किया है कि उसने सम्राट मुहम्मद शाह के आदेश से इन उपकरणों का निर्माण करवाया था जो सन् 1719 में राजसिंहासन पर बैठा था और उसे गवर्नर की उपाधि दी थी। सय्यद अहमद खान द्वारा निर्धारित काल वास्तविकता के नजदीक प्रतीत होता है।
ईंट की रोड़ी से निर्मित और चूने का पलस्तर चढ़े इन उपकरणों की बार-बार मरम्मत की गई लेकिन बड़े पैमाने पर इसमें परिवर्तन नहीं किया गया। इनमें से सम्राट यंत्र (सुप्रीम उपकरण) एक विषुवीय डायल है जिसमें पृथ्वी के अक्ष के समानान्तर कर्ण सहित त्रिकोणीय शंकु बने हैं और शंकु के दोनों पार्श्वों पर वृत्तपाद बने हुए हैं जो विषुवत् रेखा के समानांतर हैं। इसके दक्षिण में जयप्रकाश में दो नतोदर अर्धगोल संरचनाएं हैं जिनसे सूर्य और अन्य खगोलीय पिन्डों की स्थिति का पता लगाया जाता है।
जय प्रकाश के दक्षिण में दो गोलाकार भवन हैं जिनके मध्य में एक स्तंभ है जो राम यंत्र है और जिसकी दीवारें और तल क्षैतिजाकार और ऊर्ध्वाधर कोणों के पाठ्यांक के लिए अंशांकित हैं। इसके उत्तर-पश्चिम में मिश्रयंत्र (मिश्रित उपकरण) है जिसमें एक यंत्र में चार यंत्र जुड़े हुए हैं और इसी पर इसका नाम रखा गया है। ये नियत चक्र हैं जो चार स्थानों- दो यूरोप में और एक-एक जापान और प्रशांत महासागर में दक्षिणात्य को दर्शाते हैं, आधे पर विषुवीय डायल है। एक दक्षिणोत्तर-भित्ति-यंत्र है जिसका इस्तेमाल दक्षिणात्य की ऊंचाई ज्ञात करने के लिए किया जाता है और एक कर्क राशि-वलय है जो कर्क राशि में सूर्य के प्रवेश को दर्शाता है। इन उपकरणों के पूर्व में भैरव का एक छोटा सा मंदिर भी है जो महाराजा जयसिंह द्वारा बनवाया गया लगता है।
स्मारक सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।
प्रवेश शुल्क:- भारतीय नागरिक और सार्क देशों (बंगलादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान) और बिमस्टेक देशों (बंगलादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलेंड और म्यांमार) के पर्यटक- 15/-रूपए प्रति व्यक्ति
अन्य- 200/- रूपए प्रति व्यक्ति
(15 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए प्रवेश नि:शुल्क है)।