विदेशों में गतिविधियाँ
सर्वेक्षण के पुरात्वीय प्रयास उप महाद्वीप की सीमाओं के बाहर किए गए और विदेशों में इसके सभी अभियान उत्कृष्ट रहे हैं ।
अफगानिस्तान
विदेशों में अभियानों का सिलसिला आर.ई.एम.व्हीलर के वर्ष 1946 में किसी समय किए गए अफगानिस्तान के दौरे से आरंभ हुआ । एक दशक के बाद, टी.एन. रामचन्द्रन और वाई.डी. शर्मा ने कला की परम्पराओं, पुरालेखीय अभिलेखों और पुरातत्वीय अवशेषों का पता लगाने और उनके अन्वेषण के लिए मई-जुलाई, 1956 के बीच अफगानिस्तान का दौरा किया । सर्वेक्षण के दौरान कई स्थलों का भ्रमण किया गया और संग्रहालयों में रखे गए पुरातत्वीय अवशेषों का व्यापक अध्ययन किया गया ।
आर. सेन गुप्ता और बी.बी. लाल तथा उनके सहयोगियों के तत्वावधान में बाम्यैन स्थित बुद्ध की प्रतिमा एवं बल्ख स्थित ख्वाज़ा पारसा की मस्जिद का संरक्षण एवं जीर्णोद्धार तथा सूफी संत ख्वाज़ा अबू नासर के मक़बरे का बड़े पैमाने पर किया गया मरम्मत कार्य सर्वेक्षण के महत्वपूर्ण प्रयासों में से एक प्रयास था ।
बी.के. थापर और उनके दल ने 1975 में अफगानिस्तान के फराह क्षेत्र का दौरा किया । उन्होंने अर्घनदाब नदी के किनारे काफिर किला और किला फरीदां क्षेत्र का पता लगाया ।
इंडोनेशिया
एन.पी. चक्रवर्ती और सी. शिवराममूर्ति के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने बार्बोडूर स्थित प्रसिद्ध स्मारक का दौरा किया और इसका व्यापक प्रलेखन किया गया ।
मिस्र
1961-62 में प्रागैतिहासिक पुरातत्व की खोज के लिए बी.बी. लाल और उनके दल ने मिस्र में नूबिया का दौरा किया। उन्होंने अफयेह के निकट नील नदी के टीलों में मध्य एवं परक्ती प्रस्तर युग के औजारों की खोज की । इस दल ने अफयेह स्थित कुछ स्थलों और ग श्रेणी के लोगों के कब्रिस्तान, जिसमें लगभग 109 कब्र थीं, का उत्खनन भी किया ।
नेपाल
वर्ष 1961-62 में श्री आर.वी. जोशी तथा डी.मित्रा के नेतृत्व में दो अभियान नेपाल में भेजे गए । भैरवा तथा तोलिहावा जिलों में अनेकों स्थलों की खोज के अतिरिक्त मिशन ने कुदान तथा तिलोराकोट में भी उत्खनन किए । दूसरे दल ने पलैस्टोसेन अवधि की भू आकृति विज्ञानीय विशेषताओं की खोज की थी ।
वर्ष 1963 में कृष्णा देव ने नेपाल में प्रतिमा विज्ञानीय सर्वेक्षण किया । दुर्लभ मूर्तियां जैसे एक पद त्रिमूर्ति के रूप में शिव, गीज के रथ पर सवार चन्द्र, महेश समहास तथा अर्द्धनारी में विष्णु अत्यधिक उत्कृष्ठ खोजों में थे ।
एस.बी. देव तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने वर्ष 1965 में नेपाल में भवरा से त्रिवेणी घाट के बीच के क्षेत्र का अन्वेषण किया । इन्होंने बंजारही, लुम्बिनी तथा पैसा का दक्षिणी भाग का भी उत्खनन किया ।
कम्बोडिया
कम्बोडिया में अंकोरवाट का संरक्षण बाहर के देशों में सर्वेक्षण की सर्वाधिक उत्कृष्ठ परियोजनाओं में से संभवत: एक है । श्री आर. सेन गुप्ता, बी.एन. टंडन तथा आर. दत्तागुप्ता, जिन्होंने अक्तूबर, 1980 में मंदिर का दौरा किया था, ने भवन में देखे गए नुकसान तथा कमियों के आकलन के लिए एक स्थिति रिपोर्ट तैयार की । वर्ष 1982 में के.एम. श्रीवास्तव तथा उनके दल ने एक परियोजना रिपोर्ट तैयार की तथा संरक्षण परियोजना पर प्रयोग किया । एम.एस. नागाराज राव के अधीन पांच सदस्यीय दल ने अंकोरवाट का दौरा किया तथा श्रीवास्तव द्वारा पहले तैयार की गई रिपोर्ट में कुछ टिप्पणी शामिल करते हुए एक व्यापक संरक्षण रिपोर्ट तैयार की । परिणामस्वरूप 1986-1992 के बीच के.पी. गुप्ता, बी.एस. नयाल, सी.आई. सूंरी तथा बी. नरसिम्हैया के नेतृत्व वाले तथा उनके मिशन दल ने सफलतापूर्वक इस मंदिर के संरक्षण तथा जीर्णोद्धार कार्य को पूरा किया ।
बहरीन
सरकार के अनुरोध पर श्री के.एम. श्रीवास्तव के नेतृत्व में तेरह सदस्यीय दल ने वर्ष 1983 में उत्खनन किया । इन्होंने लगभग 70 कब्रों को खोदा । प्राप्त की गई अन्य वस्तुओं में से छ: इंडस सीले, पारम्परिक इंडस लिपि सहित एक गोलाकार सेलखड़ी सील महत्वपूर्ण वस्तुएं थीं ।
माल द्वीप समूह
सार्क तकनीकी सहायता कार्यक्रम के अन्तर्गत बी.पी. बोर्डीकर के नेतृत्व में एक दल ने मालदीव द्वीप समूह में इस्लाम पूर्व अवशेष की जांच की। अर्जाडु, कुदाहुवान तथा कुरूमथी, टोड्ड तथा निलांडू प्रवालदीव में अन्वेषण तथा वैज्ञानिक सफाई लघु उत्खननों से बौद्ध विशेषताएं प्रकाश में आई हैं ।
भूटान
नेखांग-लखांग टोंगजा डी जॉग के मिथरागये-लखांग तथा डो डे ड्राक मठों के भित्ति –चित्रों के परिरक्षण और भित्ति–चित्रों के रासायनिक परिरक्षण के लिए श्री एन. वेंकटेश्वर तथा जयराम सुन्दरम के नेतृत्व में वर्ष 1987-88-89 के बीच दो मिशनों को भूटान भेजा गया ।
अंगोला
अंगोला की राजधानी लुआंडा में साओ मिग्ऊएल के किले में केनद्रीय सशस्त्र सेना संग्रहालय का जीर्णोद्धार तथा पुनर्गठन किया गया । वर्ष 1988-89 के बीच पहले श्री डी.के. सिन्हा तथा बाद में श्री एम. खातून के नेतृत्व वाले भारतीय दल ने प्रागैतिहासिक तथा पुर्तगाली दीर्घा द चैपल, कामरेउ अगोस्टीन्हो नेटो दीर्घा तथा स्वतंत्रता के लिए संघर्ष दीर्घा में प्रदर्शों को पुन: व्यवस्थित किया ।
वियतनाम
डॉ. के.टी. नरसिम्हा तथा श्री एम.एम. कनाडे ने वियतनाम के स्मारकों का दौरा किया जो जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थे तथा संरक्षण उपायों के लिए परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत की ।
म्यांमार
डॉ. एस.वी.पी. हलाकट्टी तथा श्री ए.एच. अहमद ने म्यांमार के स्मारकों का दौरा किया तथा संरक्षण उपायों की विस्तृत रिपोर्ट प्रसतुत की ।
इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक विनियमन कार्य के अधभ्न भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विद्वान तथा विशेषज्ञ नियमित रूप से बाहर के देशों का दौरा करते हैं ।